कुमार विश्वास, जो अपनी पूरी ज़िंदगी मुस्लिम समाज के मंच, विशेष रूप से मुशायरों से, शोहरत और पैसा कमाने में व्यस्त रहे, यह वही व्यक्ति है जिसने उर्दू भाषा और मुस्लिम माहफ़िलो और उनके के मंच से नाम, शोहरत, और पैसा कमाया। गल्फ देशों में उसे जो सम्मान और दौलत मिला, वह उसकी पहचान और कविता के कारण नहीं, बल्कि उस मंच के कारण था, जिसे मुस्लिम समाज ने उसे दिया।
आज उसी समाज और उसके लोगों पर सवाल उठाकर अपनी पहचान और योगदान को भुला बैठा है। कुमार विश्वास, जो कभी हिंदी कवि के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए मुस्लिम समाज के मुशायरों में शिरकत करता था , आज कुमार विश्वास जिस तरह से मुस्लिम समाज और उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगियों पर सवाल उठा रहा है, वह न केवल उसकी तंगदिली और गन्दी सोच को दिखाता है, बल्कि उसकी सियासी महत्वाकांक्षा और मुस्लिम विरोधी सोच को भी उजागर करता है। चाहे वह शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी की शादी पर विवादित टिप्पणी हो, करीना कपूर और सैफ अली खान के बेटे का नाम तैमूर रखने पर सवाल उठाना हो, या सानिया मिर्जा की शादी को लेकर बयान देना हो, कुमार विश्वास की हर बात मुस्लिम विरोधी एक एजेंडे के तहत की गई लगती है। यह दिखाती हैं कि वह जानबूझकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का हिस्सा बनने के लिए है। उसका ब्यान सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश है । यह सिर्फ एक सस्ती लोकप्रियता और राजनीति में अपनी जगह बनाने का प्रयास है। और अपने आका बीजेपी और आरएसएस को खुश करने के लिए कर रहा है।
यह साफ दिखता है कि कुमार विश्वास, बीजेपी और आरएसएस को खुश कर, राज्यसभा की सीट हासिल करने का सपना देख रहा है। उसके बयान न केवल मुस्लिम समाज के प्रति नफरत फैलाने वाले हैं, बल्कि यह भी साबित होता है कि वह आज उस मंच और समाज को गाली दे रहा है, जिसने उन्हें एक पहचान दी।
क्या यह वही कुमार विश्वास हैं, जो कभी “इंसानियत” और “प्यार” की बात करता था ? क्या वह सब नकली थे? या अब वह अपनी कविता को भी नफ़रत की राजनीति का औजार बना चुका है ? यह उसका दोहरा चरित्र और अवसरवादी स्वभाव है, जो उसे न केवल गिरावट की ओर ले जा रहा है, बल्कि उसकी असलियत को सबके सामने उजागर कर रहा है।
अगर कुमार विश्वास को लगता है कि वह नफ़रत की राजनीति के सहारे राज्यसभा पहुंच जाएगा, तो राजयसभा में एक और नफरती चिंटू का उदय होगा जो केवल नफरत के फैक्ट्री में उगने वाले सड़े, गले समाज की उत्पत्ति का एक सड़ा हुआ बिच ही साबित होगा।
कुमार विश्वास जैसे लोगों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि कला और साहित्य का उद्देश्य समाज को जोड़ना है, तोड़ना नहीं। अगर वह अपनी कला को इस स्तर तक गिरा देंगे, तो उनके लिए सम्मान पहचान और मकबुलियत हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।
सभ्य और मुस्लिम समाज को अब समझ जाना चाहिए की कुमार विश्वास की इनगन्दी टिप्पणियों को एक उदाहरण मानकर ऐसे लोग, जो अपनी सुविधा के अनुसार सेक्युलर और मुस्लिम मंच का उपयोग करते हैं और फिर उन्हें निशाना बनाते हैं, उनकी सच्चाई को उजागर करना ज़रूरी है। मुस्लिम समाज को यह समझना होगा कि अब उन लोगों को मंच और समर्थन देना बंद किया जाए, जो उनके खिलाफ जहर उगलते हैं।
तनवीर अहमद
सामाजिक कार्यकर्त्ता
9431101871